अतिथि सत्कार हमारी संस्कृति में बहुत ही महत्वपूर्ण है ।
अतिथि अर्थात जिसके आने की कोई तिथि निश्चित ना हो वह है अतिथि अतिथि सत्कार हम लोगों की संस्कृति में होता है आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव, मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, तो ये सभी हमारे लिए देवताओं के समान है देव तुल्य हैं । इनके आदर सत्कार से सम्मान से हमें आशीर्वाद प्राप्त होता है जीवन के सुख शांति समृद्धि प्राप्त होती है । हमारे शास्त्रों में तो यह भी कहा गया है कि , प्रतिदिन अतिथि सत्कार होना चाहिए देवताओं का पूजन होना चाहिए, ऋषि - ब्राह्मणों का पूजन होना चाहिए । पर प्रतिदिन ना हो पाए तो जब भी आप के दरबाजे पर आएं तब आप उनका पूजन अवश्य करें। प्रतिदिन भगवान की आराधना करें और अपने बच्चों को भी संस्कार दें , पाश्चात्य सभ्यता से बचें और अपनी भारतीय संस्कृति सभ्यता की ओर ध्यान दें ।
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