इस संसार में समस्त प्राणी दुःखी है।
कोई तन दुखी कोई मन दुखी,
कोई धन बिन रहत उदास।
थोड़े थोड़े सब दुखी सुखी राम के दास।।
संसार में जो आया है सुख-दुख हानि लाभ जीवन मरण यह सब तो साथ में चलना ही है। कोई अपने तन से दुखी है, मुझे ऐसी चोट लग गई है यह भगवान ने मेरा कोई एक अंग नहीं दिया है । उस चीज को लेकर केवल चिंता में पड़ा रहता है । तो कोई अपने मन से दुखी है, किसने कुछ उल्टा सीधा बोल दिया उसी बात को लेकर के दुखी है। तो कोई अपने धन के बिना दुखी के धन की चिंता कर रहा है। मुझे कहीं से धन प्राप्त हो जाए क्योंकि धन के बिना आजकल कुछ होता नहीं है।
तो सभी लोगों को अपने अपने दुख से दुखित हैं । और सुखी वह है जो निरंतर भगवान का नाम जप ध्यान करता रहता है ,जिसे संसार की किसी वस्तु से कोई मतलब ही नहीं है। अच्छा दुख का कारण है क्या? तो... मैं अरु तोर तोर तैं माया । जिसने अपने पराए के बंधन बांध लिए। अरे... यह मेरा है यह तुम्हारा है। वही दुखी है। कुछ हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार होता है। तो कुछ हमारी इसी जन्म के कर्मों के अनुसार हमको फल की प्राप्ति होती है। इसमें भगवान को कोई दोष नहीं। अपितु हमारा ही दोष है जो हम परमपिता परमात्मा को भूल कर संसार में अपने मन को लगाए बैठे हैं। कहते हैं संसार सागर , सागर का मतलब होता है समुद्र, तो समुद्र अथाह है , आज तक कोई वैज्ञानिक यह ज्ञात नहीं कर पाया कि समुद्र की गहराई क्या है। ठीक इसी प्रकार संसार सागर है जितना आप इसमें डूबते जाओगे आपको रस आएगा उतनी ही ज्यादा पर संसार में फंसते जाओगे। इसकी भी गहराई का कोई पता नहीं है कितना लंबा चौड़ा है कितनी गहराई है कोई पता नहीं । इसलिए परमात्मा का भजन करो, संसार में अपने पराए के बंधन तो बांधो पर उनमें आशक्ति मत करो। radhe radhe
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